"भारतीय नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रमी संवत् 2075
भारतवर्ष में इस समय देशी विदेशी मूल के अनेक संवतों का प्रचलन है, किंतु भारत के सांस्कृतिक इतिहास की दृष्टि से सर्वाधिक लोकप्रिय 'विक्रम संवत' ही है। आज से लगभग 2,068 वर्ष यानी 57 ईसा पूर्व में भारतवर्ष के प्रतापी राजा विक्रमादित्य ने देशवासियों को शकों के अत्याचारी शासन से मुक्त किया था। उसी विजय की स्मृति में चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से विक्रम संवत का भी आरम्भ हुआ था।
नये संवत की शुरुआत
प्राचीन काल में नया संवत चलाने से पहले विजयी राजा को अपने राज्य में रहने वाले सभी लोगों को ऋण-मुक्त करना आवश्यक होता था। राजा विक्रमादित्य ने भी इसी परम्परा का पालन करते हुए अपने राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों का राज्यकोष से कर्ज़ चुकाया और उसके बाद चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मालवगण के नाम से नया संवत चलाया। भारतीय कालगणना के अनुसार वसंत ऋतु और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीन काल से सृष्टि प्रक्रिया की भी पुण्य तिथि रही है। वसंत ऋतु में आने वाले वासंतिक 'नवरात्र' का प्रारम्भ भी सदा इसी पुण्य तिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत की इन तमाम कालगणनापरक सांस्कृतिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से ही अपने नवसंवत्सर संवत को चलाने की परम्परा शुरू की थी और तभी से समूचा भारत इस पुण्य तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है।दरअसल, भारतीय परम्परा में चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य शौर्य, पराक्रम तथा प्रजाहितैषी कार्यों के लिए प्रसिद्ध माने जाते हैं। उन्होंने 95 शक राजाओं को पराजित करके भारत को विदेशी राजाओं की दासता से मुक्त किया था। राजा विक्रमादित्य के पास एक ऐसी शक्तिशाली विशाल सेना थी, जिससे विदेशी आक्रमणकारी सदा भयभीत रहते थे। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला संस्कृति को विक्रमादित्य ने विशेष प्रोत्साहन दिया था। धंवंतरि जैसे महान् वैद्य, वराहमिहिर जैसे महान् ज्योतिषी और कालिदास जैसे महान् साहित्यकार विक्रमादित्य की राज्यसभा के नवरत्नों में शोभा पाते थे। प्रजावत्सल नीतियों के फलस्वरूप ही विक्रमादित्य ने अपने राज्यकोष से धन देकर दीन दु:खियों को साहूकारों के कर्ज़ से मुक्त किया था। एक चक्रवर्ती सम्राट होने के बाद भी विक्रमादित्य राजसी ऐश्वर्य भोग को त्यागकर भूमि पर शयन करते थे। वे अपने सुख के लिए राज्यकोष से धन नहीं लेते थे।
राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान
पिछले दो हज़ार वर्षों में अनेक देशी और विदेशी राजाओं ने अपनी साम्राज्यवादी आकांक्षाओं की तुष्टि करने तथा इस देश को राजनीतिक द्दष्टि से पराधीन बनाने के प्रयोजन से अनेक संवतों को चलाया किंतु भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान केवल विक्रमी संवत के साथ ही जुड़ी रही। अंग्रेज़ी शिक्षा-दीक्षा और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज भले ही सर्वत्र ईस्वी संवत का बोलबाला हो और भारतीय तिथि-मासों की काल गणना से लोग अनभिज्ञ होते जा रहे हों परंतु वास्तविकता यह भी है कि देश के सांस्कृतिक पर्व-उत्सव तथा राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरु नानक आदि महापुरुषों की जयंतियाँ आज भी भारतीय काल गणना के हिसाब से ही मनाई जाती हैं, ईस्वी संवत के अनुसार नहीं। विवाह-मुण्डन का शुभ मुहूर्त हो या श्राद्ध-तर्पण आदि सामाजिक कार्यों का अनुष्ठान, ये सब भारतीय पंचांग पद्धति के अनुसार ही किया जाता है, ईस्वी सन् की तिथियों के अनुसार नहीं।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :
1. इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
2. सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
3. प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
4. शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
5. सिखो के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।
6. स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया |
7. सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8. विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
9. युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :
1. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
भारतीय नववर्ष कैसे मनाएँ :
1. हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें।
2. आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।
3 . इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहराएँ।
4. आपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ।
5. घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।
6. इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।
इस नववर्ष सभी मन के साथ तन से भी भारतीय और साथ मे सनातनी दिखने का प्रयत्न करें।सभी अपने जीवन में बहुत व्यस्त हैं इस को ध्यान में रखते हुए कुछ बातें जो आप प्रतिदिन कर सकते हैं वह करने का प्रयत्न करें इसके लिए आपको केवल 2 मिनट अपने दिन का भारतीय दिखने के लिए भी देना है।
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